जीवित व्यक्ति को फाइल में कर दिया मृत, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने सचिव समाज कल्याण से तलब की रिपोर्ट
चंदौली/इलिया

थाना क्षेत्र के सरैया गांव के शिवमूरत केशरी (78) को समाज कल्याण के अधिकारियों ने फाइलो में मृत घोषित कर दिया है। विभागीय अधिकारियों एवं बाबुओं की लापरवाही का आलम यह है कि आवेदन करने के बाद भी पेंशन शुरू नही हो पाई। पीड़ित ने जिलाधिकारी एवं समाज कल्याण अधिकारी को भी जीवित होने की बात बताते हुए पेंशन शुरू करने की गुहार लगाई थी। मामले का संज्ञान लेते हुए मानवाधिकार आर सी डब्लू ए के चेयरमैन योगेंद्र कुमार सिंह (योगी) ने दिनांक 13/10/2022 को आयोग में शिकायत भेजकर पेंशन देने के लिए अनुरोध किया था। आयोग ने मामले पर गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए चीफ सेक्रेटरी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था। आयोग के निर्देश के क्रम में दिनांक 01.06.2023 को डीएम चंदौली के कार्यालय से अन्य रिपोर्ट के साथ एक रिपोर्ट प्राप्त हुई। रिपोर्ट के मुताबिक जिला समाज कल्याण अधिकारी चंदौली ने बताया कि पीड़ित की पेंशन की प्रक्रिया अनलाइन आवेदन के माध्यम से शुरू कर दी गई है।आगे बताया गया कि जल्द ही प्रधान कार्यालय से पीड़ित के खाते में पेंशन करी कर दी जाएगी। आयोग ने रिपोर्ट का अवलोकन किया और शिकायत में लगाए गए आरोपों का खण्डन नही किया। पीड़ित को जिला समाज कल्याण अधिकारी द्वारा मृत घोषित कर दिया गया है। समाज कल्याण विभाग के निर्देश पर दोबारा पेंशन के लिए आवेदन किया। हालांकि दोबारा आवेदन करने के बावजूद समाज कल्याण विभाग द्वारा पेंशन जारी नही किया गया। आयोग ने कहा है कि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र नहीं किया गया है कि समाज कल्याण विभाग , चंदौली द्वारा उन्हें क्यों और कैसे मृत घोषित कर दिया गया है। बीच की अवधि के लिए ब्याज के बारे में भी कुछ नही बताया गया है। NHRC ने मामले पर सुनवाई करते हुए कहा है कि वृद्धा पेंशन राज्य का एक कल्याणकारी योजना है और राज्य इसके वितरण में मनमाना नही कर सकता है नही ही यह किसी लाभार्थी को इसके वितरण को मनमाने ढंग से रोक सकता है। किसी कल्याणकारी योजना के लाभों को वितरण करने में पारदर्शी और निष्पक्ष व्यवहार कानून के शासन और संबंधित मानवाधिकारों के लिए अनिवार्य शर्त है। आयोग ने कहा है कि पीड़ित को पेंशन से वंचित होने से उसे दुःख, मानसिक पीड़ा और अनुचित उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। यह स्थापित किया गया है कि पीड़ित को उसकी पेंशन से अनुचित रूप से वंचित किया गया है। जिससे उसके आजीविका के अधिकार और सम्मान के साथ जीने के अधिकार और कला के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार का उलंघन हुआ है। संभिधान की धारा 21में समानता के अधिकार का भी उल्लेख है। इसलिए आयोग मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश सरकार को मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 18 (सी) के तहत कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए कहा है उत्तर प्रदेश सरकार को मुवावजे के रूप में 10,000 (दस हजार) रूपये के भुगतान की सिफारिश क्यों नही करनी चाहिए और वृद्धा पेंशन के वितरण में देरी के परिणामस्वरूप उसके मानवाधिकारों के उलंघन के लिए ब्याज भी दिया जाएगा। आयोग ने मामले पर सख्त रुख अख्तियार करते हुए अपने निर्देश में कहा है कि पीड़ित को वृद्धा पेंशन तुरंत करी किया जाए और छह सप्ताह के भीतर एक अनुपालन रिपोर्ट भी प्रस्तुत की जाए। राज्य सरकार को संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही सहित कोई अन्य कार्यवाई करने से आयोग नही रोकेगा। किसी भी उत्तर के अभाव में यह माना जाएगा की उक्त अनुशंसा पर कोई आपत्ती नही है। इसकी सूचना चीफ सेक्रेटरी उत्तर प्रदेश सरकार को भी भेजी जानी चाहिए।